Waqf Amendment Bill: वक्फ बिल न लाते तो संसद भवन और दिल्ली एयरपोर्ट होती वक्फ की संपत्ति: मंत्री किरेन रिजिजू - Janhitnewsdigital

Waqf Amendment Bill: वक्फ बिल न लाते तो संसद भवन और दिल्ली एयरपोर्ट होती वक्फ की संपत्ति: मंत्री किरेन रिजिजू

Waqf Amendment Bill: लोकसभा में 2 अप्रैल 2025 को वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पर तीखी बहस देखने को मिली। केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने विधेयक का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा कि अगर यह बिल नहीं लाया जाता, तो वक्फ बोर्ड की मनमानी के कारण संसद भवन और दिल्ली एयरपोर्ट जैसी महत्वपूर्ण संपत्तियां भी वक्फ की संपत्ति घोषित हो सकती थीं। दूसरी ओर, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इसे अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमला बताया और इसकी संवैधानिकता पर सवाल खड़े किए। इस बहस के दौरान विभिन्न सांसदों ने अपनी राय रखी, जिसमें विधेयक के कानूनी, सामाजिक और राजनीतिक प्रभावों पर गहन चर्चा हुई।

वक्फ बोर्ड की असीमित शक्तियों पर सवाल
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने सदन में बिल पर चर्चा के दौरान तर्क दिया कि यह विधेयक वक्फ बोर्ड के कार्यों में हस्तक्षेप करने के लिए नहीं, बल्कि उसकी संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए लाया गया है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि वक्फ बोर्ड ने दिल्ली एयरपोर्ट और वसंत विहार जैसी संपत्तियों पर दावा किया था, जो इसकी असीमित शक्तियों को दर्शाता है।

रिजिजू ने स्पष्ट किया, “हम किसी मस्जिद के प्रबंधन में दखल नहीं देंगे, लेकिन वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग रोका जाना चाहिए।” उन्होंने कहा कि यह विधेयक न केवल सरकारी संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, बल्कि गरीब मुस्लिम समुदाय को भी लाभ पहुंचाएगा, क्योंकि इससे वक्फ संपत्तियों का सही उपयोग सुनिश्चित किया जाएगा।

विधेयक तैयार करने में व्यापक परामर्श
रिजिजू ने विधेयक को तैयार करने में व्यापक जनभागीदारी का दावा किया। उन्होंने बताया कि इस बिल पर चर्चा के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के समक्ष 284 प्रतिनिधिमंडलों ने अपनी बात रखी। इसके अलावा, 25 राज्यों के वक्फ बोर्डों, नीति निर्माताओं, विशेषज्ञों और धार्मिक विद्वानों ने भी इस पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि यह विधेयक सभी हितधारकों की राय के आधार पर तैयार किया गया है और इसे सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, “पहले जो लोग विरोध कर रहे थे, वे अब भी इस विधेयक का समर्थन कर सकते हैं, क्योंकि यह पारदर्शिता और सुधार लाने के लिए लाया गया है।”

विपक्ष का विरोध: “अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमला”
कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने विधेयक को लोकसभा में पेश किए जाने का कड़ा विरोध किया। उन्होंने इसे “लेजिस्लेचर को बुल्डोज़” करने जैसा बताया और आरोप लगाया कि जेपीसी में दिए गए संशोधन प्रस्तावों को सरकार ने नजरअंदाज कर दिया। वेणुगोपाल ने कहा कि यह विधेयक संवैधानिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन करता है और सरकार इसे अल्पसंख्यक समुदाय की संपत्तियों पर नियंत्रण करने के लिए इस्तेमाल करना चाहती है।
उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि वह इस विधेयक को जबरदस्ती पारित करवाना चाहती है, जबकि इसे और अधिक चर्चा के लिए भेजा जाना चाहिए था।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का जवाब
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विपक्ष की आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा कि सरकारी और गैर-सरकारी संशोधनों को समान समय दिया गया है। उन्होंने कहा, “हमने किसी भी पक्ष के साथ भेदभाव नहीं किया है। जितना समय सरकारी संशोधनों को दिया गया, उतना ही गैर-सरकारी संशोधनों को भी दिया गया।”

एनके प्रेमचंद्रन की तकनीकी आपत्ति
आरएसपी सांसद एनके प्रेमचंद्रन ने बिल की प्रक्रिया पर सवाल खड़े करते हुए पॉइंट ऑफ ऑर्डर उठाया। उन्होंने कहा कि यह मूल विधेयक नहीं है, बल्कि संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट के बाद इसमें नए प्रावधान जोड़े गए हैं। उन्होंने तर्क दिया कि “रूल 81 को सस्पेंड किए बिना इस पर चर्चा का सदन को अधिकार नहीं है। जेपीसी के पास नए प्रावधान जोड़ने की शक्ति नहीं है।”
प्रेमचंद्रन ने इसे तकनीकी आधार पर चुनौती देते हुए कहा कि मंत्री केवल जेपीसी की सिफारिशों को ही शामिल कर सकते हैं, न कि नए प्रावधान जोड़ सकते हैं। उन्होंने सरकार से इस पर स्पष्टीकरण मांगा।

गृह मंत्री अमित शाह का पलटवार
गृह मंत्री अमित शाह ने प्रेमचंद्रन के पॉइंट ऑफ ऑर्डर का जवाब देते हुए विधेयक की वैधता का बचाव किया। उन्होंने कहा, “कैबिनेट ने इस बिल को मंजूरी दी और इसे सदन के सामने रखा। फिर इसे जेपीसी को भेजा गया, जिसने विचार-विमर्श कर अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसके बाद कैबिनेट ने इसे स्वीकार किया और किरेन रिजिजू ने इसे संशोधन के रूप में प्रस्तुत किया।”
शाह ने विपक्ष पर तंज कसते हुए कहा, “अगर यह कैबिनेट की मंजूरी के बिना आता, तो पॉइंट ऑफ ऑर्डर उठाना सही होता। लेकिन यह कांग्रेस के जमाने की कमेटियां नहीं हैं, जो मनमानी करती थीं। हमारी प्रक्रिया पूरी तरह संवैधानिक और पारदर्शी है।”

विधेयक पर राजनीतिक और सामाजिक असर
लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक पर बहस के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच गहरे मतभेद स्पष्ट रूप से सामने आए। जहां सरकार इसे वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने और पारदर्शिता लाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे संवैधानिक प्रक्रिया और अल्पसंख्यक अधिकारों पर हमला करार दे रहा है।

रिजिजू के इस बयान कि “अगर यह बिल न लाया जाता, तो संसद भवन और दिल्ली एयरपोर्ट भी वक्फ की संपत्ति घोषित हो सकते थे,” ने बहस को एक नया आयाम दिया। इससे वक्फ बोर्ड की असीमित शक्तियों पर सवाल खड़े हुए हैं और इस मुद्दे की गंभीरता को उजागर किया गया है।

वक्फ संशोधन विधेयक का असर केवल कानूनी या राजनीतिक स्तर तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका सामाजिक प्रभाव भी पड़ेगा। आने वाले दिनों में यह बहस और अधिक तेज हो सकती है और इस विधेयक का भविष्य राजनीतिक समीकरणों पर भी निर्भर करेगा।

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